सोमवार, 13 दिसंबर 2010

दिन है पर किरणे बुझी बुझी
हवा भी बोझिल थकी थकी
मायूस पेड़ भी झुके झुके
पत्ते कुम्हलाए झरे झरे
फूल उनींदे थके थके
वीरानापन, जग भर पसरा
सन्नाटा ही सन्नाटा
दिन ऊंघ रहे गलियारों में
रातें उनींदी जगी जगी
बिसर गए प्रीतम तुम जब से
मौसम कितना वीराना है ..