गुरुवार, 4 जून 2009

naari

फूलूँ फलूं से लड़ी बेल सी होती हे नारी
जनम से ही मांगे सहारा बचिआं सारी
कभी बाप कभी भाई की बाहूं पर भारी
ता उम्र अंगुली पकर के चलना रखे जारी
कितनी भी बरी हो चाहे पहने साडी
फिर भी एकेले रहना परे भरी
उअर भर रहती मर्द की आभारी
तन मन उम्र उस के आगे हारी
रहती हे बन के दासी उम्र साड़ी
कभी बने बहिन कभी मातारी
जीवन सारा लुटा देती जाए दूजून पे वारी वारी
नहीं तू अबला नहीं तू नहीं बेचारी
नारी तू शक्ति हे नहीं तू बेसहारी
तुझ को न समझ पाई यह दुनिया साड़ी
यूं तो पूजे तुझे अल्लाह की कायनात सारी
तेरे आगे दुनिया की सब सूझ हारी
तू सुन्दर हे हे तू कितनी प्यारी
नारी यह जग रहेगा सदा तेरा आभारी

tasweer

सावन के महीने में
खुश खुश रहती हर दम
रंग बित्रंगे धारे वस्त्र
करके श्रृंगार
लाली ले सूरज किकिरानूं से
पहने गहने फूलूंके
माथे पे सजा के कुम कुम
करती इन्तजार झूम झूम
भर के प्यार सीना में
सावन के महीने में
जब घिर घिर आते बादल
कारे कारे बादल पहनते काजल
घटाए हवान में जुल्फे भिक्राती
सावन के महीना में
प्यार भर के सीने में
अचानक चमक उठती बिजरी जो
तस्वीर खीच जाती जमीन की
आसमान के सीना में
सावन के महीएने में

sookhe patte

सूके पत्ते
कल तह थे जो बातें करते हवा के संग
हिते डुलते झूलते द्रख्तून पे चढ़
खूब इतराते किस्मत पर अपनी
पतझर आया उसी हवा के झोंके ने
फिर दुलाया
ला जमीन पर पटकाया
हुए धरा शाई
मुँह के बल परे रहे गे
ठोकर में जमाने की
खटकते आन्खून में सब की
मिल ख़ाक में ख़ाक हो रहे गे
सूखे पत्ते
कभी किस्मत ने पलती खाई
हवा आई ले गई उरदा
कहीं कभी कहीं कभी
उरते उरते जा बेठे किसी प्रेमी के करीब
रख ले जो किताबोमें
खोए मीठी यादूं में
जी जाए फिर
एक उम्र और
हो जाएँ अमर
सूखे पत्ते