मंगलवार, 15 जनवरी 2013

मिलने किस्सी से .


बेजुबान वोह नज़रें 
 रुकी रुकी सी धरकने 
भटके भटके से एहसास
वोह बेबस बेबस सा मन 

 जाती हुई उस गाड़ी को
वोह ताकना तुम्हारा 
मिन्नतें          करता बेबस मन  ............... 
हवाओं से....वोह दुआएं अनसुनी अनकही 
.
 आज बन तूफ़ान  इतनी तेज बहो 
 रोक लो यूं की फिर जा ना पे कभी 

हाथ जो उठें दुआ के लिएय  
तो यही कहें बरिशूं से 
आज बरसो ऐसे  टूक कर
 रोक लो ना जाओ यूं कहीं ...

खुदा करे की क़यामत हो
 औररह जाए तू यहीं कहीं 
रह रह कर यही कहे मन ........

जलजला उठें कुछ ऐसे 
की रह जाओ आज यहीं 
 थाम ले तेरा हाथ .....
पकड़  कर पाऊँ तेरे
 जिद्द करे ना जाने दे कभी 

ना जाओ सजनी 
यूं छोड़ कर मुझे 
एकला नहीं रह पाऊंगा में
दे दूं गा जान अपनी 
 मर जाऊं गा 

 
उधर विडंबना 
यह है की कुछ ही दूर पर 
 सच खड़ा है 
बाहें पसरे 
करे इन्तजार 
बिछाए निगाहें 
की कब आए गी मेरी सजनी 
उस पार जो  गई थी कभी 
मिलने किस्सी से ......
आज् लौत आए गी .........
 

मेरा मरना हर दम

तेरी याद  पल पल 
तेरी बातें रोज़ रोज़ 

तेरी खुशबू हर सु 
तेरे सपर्श दम दम 

तेरा होना दिन दिन 
 तेरे सपने रात रात 

तेरा आना ख़ुशी ख़ुशी 
तेरा जाना गम गम 

तेरी उम्मीद घडी घडी 
 तेरा मिलना बार बार 
 
 तेरा बिछुरना आज कल 
तेरा साथ जनम जनम  

तेरी चाहत  हर दम 
 तेरा प्यार सदियूं सदिऊँ 


तेरा एहसास छिन छिन 
तेरी तम्मना रोज़ रोज़ 
तेरा इन्तजार पल पल 
 तेरा मिलना कम कम 

मेरा दिल  धरक धरक 
मेरा रोना जार  जार 
 मेरा जीना कम कम 
 मेरा मरना हर दम 

गम यूंही जाता रहे गा जुदाई का तेरी

किस देश में रहती है मेरी बेचैनी
कौन शाहर मेंदिल धर्क्ता है मेरा 
 कहाँ से कोई पुकार रहा है मुझे 
 संदेसा कोई ला रही हैं हवाएं 
 बदली बरस बरस बिखेरती तेरे आंसू
मेरी हेठेली में खजाने बन गे हैं मोतियूं के 
जानती हूँ तुम ने आज भेजा है धुप को मेरे आँगन में 
 कल देखि थी वोह चांदनी 
जो जहाँ रही होगी तुम्हरी किद्की से 
 उस में नहा कर लौट देना मेरी और 
उसे ही औध कर सो जननो गा में 
मीठे सपनो के मिलन भर से ही 
गम यूंही जाता रहे गा जुदाई का तेरी 

बस एक ......तेरी कमी


धुप खिल खिला रही 
लोग मिल मिला रहे 

फूल मुस्कुरा रहे 
भंवरे गुनगुना रहे 

घंघोर घटा छा  रही 
 हवाएं भी  देखो भाग रही 

मन आँगन  सब परसन्न हैं 
मौसम में जैसे बसंत आ गई 

इतराता चाँद  चांदनी भी प्रसन्न है 
तारे टीम टीम रहे  रात भी जवान है 

रिम झिम रिम झिम बूंदें टपक रही 
मन को  मेरे यूं ही रिझा रही 

सब कुछ है ज्यूं  का तयून 
बस एक ............
 तेरी कमी है खल रही 

यूं ही सुनेहरा दिन उगता  है 
यूं ही रात खुशनुमा ढल जाती है 
बस एक ..........
तेरी कमी दिल को धड़का  जाती है 
बस एक ........

जीवन को जीना है जिन्दगी की मजबूरी

रोक सको तो पवन के वेग तो रोको तुम
हरे पीले सूखे पते सब उडीजाएं गे उड़ना है उन की मजबूरी
रोक सको तो बसंत को आने से रोको तुम...
फूल तो खिलेंगे खिलना है फूलूँ की मजबूरी
रोक सको तो चंदा की चांदनी कोरोको तुम
रात महकेगी चांदनी रात की है मजबूरी
रोक सको तो सूरज को उदय होने से रोको तुम..
सेहर तो हिगी ही हर दिन है सेहर की मजबूरी
रोक सको तो रोको जीवन को तुम ...
दिल तो धर्केंगे धड़कन है दिल की मजबूरी
रोक सको तो सांसो को रोको तुम...
जीवन को जीना है जिन्दगी की मजबूरी

इंतजार

पलके झपकना भूली
पर दिल धर्क्ता है आज भी 
दिन उगता है इस आस लिए
सांझ सपने बुनती रहती 
तलब ऐसी जो मिटाए ना बने 
आग ऐसी जो भुजे ना बने 
येह्दिल की लगी नहीं पल दो पल की
यह इन्तजार हैं जन्मून के 
यह प्यास नाबुझे गी कभी 
यह इंतजार होई हैं मेरी जिंदगी अब
 

कही नजर ना लग जाए



चांदनी  ने ओढा है घूँघट 
 अन्धेरून  का 
मुस्कान मूह छिपे बैठी है
 उदासी के आढ़ में 

आन्सूनूं का पर्दा करती हैं
 यह मुस्कुराती आँखें 

दिल बेबाक
 धरकने सेडरता है 

यादूं के ढेर पर
पहरे लगा दिए हैं 

 गठरी पयार की
 बाहूं में कस  ली है
बातें सब छिपा दी हैं
 काले संदूक में 
 इन्त्जारून को किवाड़
भीतर से  कर दिया है बंद 

बतियान सब गुल
 कर के रूह के घर की 

खिड़की  में जरा सा छेड़ है 
 हर आहट पर झाँक झाँक लेता है मन 
डरता है ना ..................................
कही नजर ना लग जाए
  मेरी चाहत को
रकीबून की 
aaj phir ek baar woh raat aai hai 
jis ka intjaar saal ke shuru hote hi shuru ho jata hai 
kal 365 dino ke baad naye saal ka aagman hoga
bahut se prn liey jaein gey jindagi behtar aur
behtardar banane ke.
par hota kaya hai.....

 sal ke shuru hote hi
 din itni tej rftaar se bhangne lagte hein
 ki kab 31 dec aa jati hai pata bhi nahi chalta 
yoonhi din maheen saal beet te chale jaate hein 
jindagi aur samay band muthi se
 khisakti rait ki tarh kab khtam ho jati hai
 humein ehsaas bhi nahi ho pata 
par kaya hum khush hein ?

shayad nahi .......................

 kayoon ki hum ne sinjo kar rakha hai
 apne din maheene saalo ka a sangreh jo humari dukhad yadein hein 
kayoon hum jab bhi peeche mudh kar dekhte hein 
apne hassenpal payare log sundar rishton aur khushnuba din yaad na kar ke 
apne jeewan ke kaante been been kar gathri bana pane andhoon par us ka bojha uthae dukhi udaad ghumte rehte hein ?

chalo aaj naey saal ke din hum sab apne beete dinno ki dukhad ghtnaaon ko kisi kaale sandook mein rakh kar kaheen jal parwaah kar aaein 

aur apni khushiyoon ko apne mitro doston rishtoon ke sukhd palon ko rang birange phooloon ki tarh ek fooldan mein saja apne aas paas yoon rakh chhodein ki jab bhi man udaas ho dukhi ho un paloon khoobsurat phooloon ki aur ek nazar daalein aur apne jiwan mein bitaey sukhad paloon ke nazare apne jehan mein la kar un meethi yaddon se naha naha jaein aur sadev sadev ke liey khush ho rahe 

aur us parm pita parmeshwar ka shukriya ada karein ki us ne humein yeh din dikhaya .....