बुधवार, 2 मार्च 2011

यादों का झरोखा


जब भी किवाड़ के पीछे से,
झाँका किए हैं हम ..........

मिली हमे अपने आँगन में
बिखरी सी खुशियां छम छम ....
मुठी भर था आसमा
थाली भर थी रौशनी ...
भगोना भर भर चांदनी ...

तारों की छांह कटोरी भर-भर
ओस की बूँदें चम्मच भर-भर ...
मिली हमे अपने आँगन में
बिखरी सी खुशियां छम छम ...
खिड़की के पीछे से,
जब भी झाँका किए हैं हम ..........
पाए, झौखे सर्द-गर्म से
झरते पत्तों का दीवानापन .....
बहारेबसंत भी थोडा थोड़ा
बरखा भी भीगी भीगी सी ......
ज्यों जुगनू सी कोई कोई
यादें आएं, खोई खोई सी .......

और झरोखे के कौने से,
जब भी झाँका किए हैं हम ..........

देखि हैं कुछ मीठी मीठी बातें
कुछ खाते खाते पल
कुछ मिलन की खुशियाँ
जुदाई का ढेर सारा गम ........

जब भी कभी झाँका है हमने
किसी द्वार की आड़ ......
पाया हमने इंतजार ही
और प्यार की प्यास ....

फिर जब अंत में झांका हमने
अपने ही गिरहबान में
देखे हमने रेशमी रिश्ते
और वो ढलका ढलका आँचल ...
वो अखियों का शरमाना |
वो मिलन के पहले पल ...
वो रूठना मनाना |

जब भी कभी चुपके से बैठ
सोचा किए हम ...
तुम ही तुम हो हर सू
वो तुम ही हो
हर पल हर दिन ...