रविवार, 14 जून 2009

khyaal

मुझे ने बाँध पाएंगे ये किनारे
न ही रोक सकती ये दीवारें

मुझे न बाँध पाएँगी ये बहारें
मुझे न पकड़ पाएंगी ये हवाएं

रात ही स्याही से मैं डरती नहीं
क्या कह लेंगी मुझे यह सावन की घटाएं

यह चंदा यह तारे यह सूरज
कोई न मुझे संभाल पाए !!

यह बादल यह आकाश
नहीं मुझ को यह छू पाए !!

पास किसी के में रहती नहीं
किसी की होके रहूँ ये मुमकिन नहीं

यूं तो में सब की हूँ
जो बुलाले प्यार से
उसी ही की हो के रहती हूँ


नन्हे हाथ भी रोक लेते मुझे
प्यार की खातिर
मिट मिट जाती हूँ में

में हूँ प्रीत जो बसती हूँ सब में
पर कोई मुझे न रोक पाए
मुझे न पकड़ पाएं ये हवाएं

में लोरी हूँ प्रीत की
स्वच्छंद विचार हूँ
एक ख्याल हूँ
प्यार हूँ

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