शनिवार, 18 जुलाई 2009

आपके नाम

थामा जो आपने हाथ
लगा बचपन से है साथ

एक बहती धारा हूँ
जिसे थामा इक मौज ने
आओ दोनों मिलके बह चलें
उस सागर की ओर
जिसका न कोई ओर ना छोर

थामा जो हाथ फिर
साथ न छोडेंगे
चलते चलते साथ फिर
साथ ना छोडेंगे

ये वादा है तुमसे
ज्यूं ज्योति संग ज्योत जले
मिले सागर से
हो सागर जैसे

मैं मैं ना रहूँ
तू तू ना रहे
मुझसे मैं
तुझसे तू खो जाये
तुझमे मैं खो जाऊं

आ मिल आलिंगन में
कुछ ऐसे दोनों खो जायें
कुछ ऐसे

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

nafrat karne wallo ke sine me piyar bhr duu,
Me woo parwana hu pather ko mom kar duu.

बेनामी ने कहा…
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बेनामी ने कहा…

यूँही टहलते हुए आगया आपके ब्लॉग में...
सुन्दर अभिव्यक्ति है...!!!
www.nayikalam.blogspot.com

ashokjairath's diary ने कहा…
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ashokjairath's diary ने कहा…

Hum tumhaare hain 'Kunwar'usne kaha thha ik din,
Man mein ghulti rahi misri ki dali meelon tak

RDS ने कहा…

श्रेष्ठ अभिव्यक्ति...