पसरे सुबह बन कर
चले हवा हो कर
बहे तो गंगा सागर हो कर
चमके तो चांदनी सा
फैले हर सू खुसबू सा
दुल्रारे गोदी सा भूम हो
भरे पेट बन्स्पत हो
आलिंगन में ले ले कुदरत हो
सर पर छत सा गगन वोह
रोशन हो धुप सा वोह
तो कहाँ
छिप छिपा सके है एह इंसान तू
उस की नजर की ज्योत है चारूं और
आ शरण पा आर्शीवाद
कर दे तेरे सरे गुनाह मुआफ
मिल के इक से इक हो रह
झुका दे सर बेच दे मन परभू के पास
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