मिली नही नजर कि बस जुबान बन गई
आवाज़ का खयाल ही तो कान बन गई
ओंठ कपकपा उठे पर दिल न कह सका
ये कैसी शर्म है कि जो गुलाल बन गई
शरारतों में, छुअन का ख्याल बस गया
एहसास छुप सका न, बेनक़ाब बन गई
बेबाक चले आये हो इस कदर जो सपन में
आंखे मेरी, ज़माने का हर ज़वाब बन गई
सहर होने को है, और ये बेहिज़ाब हो गई
बस गए हो दिल में, तो ताज़िन्दगी रहो
ये घर है अब तुम्हारा, मैं बेमकान हो गई
4 टिप्पणियां:
शरारतों में, छुअन का ख्याल बस गया
एहसास छुप सका न, बेनक़ाब बन गई
बेबाक चले आये हो इस कदर जो सपन में
आंखे मेरी, ज़माने का हर ज़वाब बन गई जाओ चले जाओ चुपके से पलक से
सहर होने को है, और ये बेहिज़ाब हो गई
wah kya baat hai.....
ati sunder
बस गए हो दिल में, तो ताज़िन्दगी रहो
ये घर है अब तुम्हारा... waah
shukriya
Dil men mitha mitha bhav jagati bahut hi sunder rachana. Badhai.
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