न धडकन है टूटी,
न दिल ही है बिछुडा ।
ज़रा सी ये दूरी
थी थोडी ज़रूरी ।
वरना ये सासें भी
ज़ख्मी हो जातीं ।
तेज़ हो चली थी,
ठहर न रही थी ।
ये थोडा सा संयम
और थोडा सा विरहा ।
मुझे थाम लेगा
मुझे राह देगा ।
राहें थी प्यारी
मुझे यूं लुभाती
भटक मैं चला था
ठहर न रहा था ।
मेरी थी गलती
तो सज़ा मैं ही मांगूँ
कष्ट जो तुम्हे हो
तो क्षमा भी मैं मांगूँ
मुझे माफ करना
खता भूल जाना
जो राहें पुरानी
उसी राह जाना ।
पल जो गुज़ारे
संग संग तुम्हारे
है मेरी अमानत
उसे न भुलाना ।
4 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना।
sundar atisundar badhai
achhi lagi
Sach sath gujare pal hi sabse badi amanat hote hain......
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