एक एकेली न कोई सहेली
मैं अलबेली नार नवेली
पर नहीं में अकेली
की अल्लाह है मेरा बेली
करती हूँ खुद से बातें
कहाँ गई वोह अकेली रातें
धरती मेरा बिछोना
अम्बर है मेरा ओड़ना
सागर मेरी कश्ती
यह कायनात मेरी हस्ती
मौजें मेरी पतवार
जाना है मुझे उस पार
प्रीतम की बाहूं में
बिछ जाऊं गी राहून में
मैं नहीं किसी की मुहताज
साथ है मेरे मऊला आज
मैं कहाँ एकेली
जब अल्लाह मेरा बेली
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