नजरें कुछ धुंधलाई सी
चाल कुछ लड़ख्राई सी
जितना ऊंचा सुनती हूँ
उतना ही धीमा बोलती हूँ
दांत भी कुछ हे कुछ नहीं
कहती हूँ कुछ
सुनती हूँ कुछ और ही
आधे अधूरे शब्द
बिना चबाए ही निगल जाती हूँ
दिमाघ भी चल गया है शायद
चल भी नहीं पति हूँ न
हस्ती बहुत हूँ
बार बार दांत हाथ में आ जाते हैं
अरे में कोई जादू की पुरिया नहीं हूँ
बस कुछ ही बरस हुए
नन्ही सी गुडिया थी में
आफत की पुरिया थी में
हाँ खूब पहचाना आपने
एक नई नयी सी बुधिया हूँ में
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