डुबो के कलम ल्फजून की
साही में अरमानो की
ले के मशवारे इरादे से
बिठा के ख्यालूँ को
आँचल के झूले में
रोज़ बातें करती हूँ
अन्गुलियूं से
लिखती हूँ पाती
पर लिख नहीं हूँ पाती
जब तक न मिल जाए
कोई एक साथी
जो देदे अपने कान
सुनने को मेरी तान
मेरे ख्वाबून की उदान
चले मेरे संग
पहचाने मेरे सब रंग
देखे हूँ जिसने मेरे ढंग
हो लूं में उस के संग
तो लिख पाती पाती
में उसी की ही हो जाती
2 टिप्पणियां:
aap ne to kamal hi kar diya .
किसने किसको देखा है, किसने किसको जाना है ?
हर रूह यहाँ भटकी भटकी हर शख्श यहाँ अनजाना है |
जो कान धरे और तान सुने, अमृत घट का दीवाना है |
जिसको तुम अपना मान चले वह भी अब तक बेगाना है |
विरह मिलन है मन का क्रंदन भाव उठे उड़ जाना है |
दो पल की जुदाई क्या कहिये जीवन ही आना जाना है |
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