मंगलवार, 15 जनवरी 2013

बस एक ......तेरी कमी


धुप खिल खिला रही 
लोग मिल मिला रहे 

फूल मुस्कुरा रहे 
भंवरे गुनगुना रहे 

घंघोर घटा छा  रही 
 हवाएं भी  देखो भाग रही 

मन आँगन  सब परसन्न हैं 
मौसम में जैसे बसंत आ गई 

इतराता चाँद  चांदनी भी प्रसन्न है 
तारे टीम टीम रहे  रात भी जवान है 

रिम झिम रिम झिम बूंदें टपक रही 
मन को  मेरे यूं ही रिझा रही 

सब कुछ है ज्यूं  का तयून 
बस एक ............
 तेरी कमी है खल रही 

यूं ही सुनेहरा दिन उगता  है 
यूं ही रात खुशनुमा ढल जाती है 
बस एक ..........
तेरी कमी दिल को धड़का  जाती है 
बस एक ........

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