मंगलवार, 15 जनवरी 2013

गम यूंही जाता रहे गा जुदाई का तेरी

किस देश में रहती है मेरी बेचैनी
कौन शाहर मेंदिल धर्क्ता है मेरा 
 कहाँ से कोई पुकार रहा है मुझे 
 संदेसा कोई ला रही हैं हवाएं 
 बदली बरस बरस बिखेरती तेरे आंसू
मेरी हेठेली में खजाने बन गे हैं मोतियूं के 
जानती हूँ तुम ने आज भेजा है धुप को मेरे आँगन में 
 कल देखि थी वोह चांदनी 
जो जहाँ रही होगी तुम्हरी किद्की से 
 उस में नहा कर लौट देना मेरी और 
उसे ही औध कर सो जननो गा में 
मीठे सपनो के मिलन भर से ही 
गम यूंही जाता रहे गा जुदाई का तेरी 

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