रविवार, 22 नवंबर 2009

कैसा यह अहसास मुझे अब !!

एहसास सा यह होने लगा है ।
करीब मेरे कोई आने लगा है ।।

दिल-ओ-जाँ से जैसे कि चाहने लगा है ।
कुछ प्यारा सा मीठा सा होने लगा है ॥

कुछ डर सा भी भी तो यूं लगने लगा है ।
कि सोया था अब तक वो प्यार जगने लगा है ।।

उमंगें, अंगडाइयां लेने लगी हैं ।
और मन भी भर भर के आने लगा है ॥


कोई क्यों इतने नज़दीक़ आने लगा है ।
क्यों दिन में सपने दिखाने लगा है ॥

क्यों मासूम दिल को धडकाने लगा है ।
क्यों एहसास मीठा वो जगाने लगा है ॥

शायद वो प्यारा सा लगने लगा है ।
या शायद मुझे प्यार होने लगा है ॥

बुधवार, 4 नवंबर 2009

जब तक

जब तक नज़रें थी अपने पर , ख़ुद को ही देखती थी मैं ,
जब से मिली तुम से नज़र, ख़ुद को देखना भूल गई ,

जब तक मिली ना थी तुमसे, खुद को ही जानती थी
जब से मिलना हुआ तुम से, खुद से मिलना भूल गई ,

जब तक रहती थी अपने घर, ख़ुद के साथ ही रहती थी ,
जब से आ गई घर तुम्हारे, खुद के घर का पता भूल गई

जब तक अपनी दुनिया में थी , लौट आती थी अपने ही पास
जब से खोई तुम्हारी दुनिया में, वहां से लौट के आना भूल गई

रविवार, 1 नवंबर 2009

राह दिखलाओ

ध्यान इक धुंद में कहीं कुछ खो गया है !
मन किसी गहरी नींद में ज्यों सो गया है !!

अरे, एक दीप इस घर में कोई तो जला दो !
मेरे सोए हुए मन को ज़रा झकझोर जगा दो !!

अमावस सा यह जीवन क्यों भला यह हो गया है !
ज्ञान मन का क्यों ह्रदय से दूर कही पर खो गया है !!

कोई तो दे के न्योता आज सूरज को जा लिवा लाओ !
खोए हुए ज्ञान को फिर मेरे घर राह दिखलाओ !!

सैलाब मैं कैसे धरोहर सब मेरी क्यों बह गई है !
और लकीरों में भी तो कुछ छिन गयी कुछ रह गयी है !!

कोई करो मेरे लिए कुछ दुआ कि सैलाब बाँधू !
और फिर संयम सहारा ऐसा बने कि मन को साधूँ !!