एहसास सा यह होने लगा है ।
करीब मेरे कोई आने लगा है ।।
दिल-ओ-जाँ से जैसे कि चाहने लगा है ।
कुछ प्यारा सा मीठा सा होने लगा है ॥
कुछ डर सा भी भी तो यूं लगने लगा है ।
कि सोया था अब तक वो प्यार जगने लगा है ।।
उमंगें, अंगडाइयां लेने लगी हैं ।
और मन भी भर भर के आने लगा है ॥
कोई क्यों इतने नज़दीक़ आने लगा है ।
क्यों दिन में सपने दिखाने लगा है ॥
क्यों मासूम दिल को धडकाने लगा है ।
क्यों एहसास मीठा वो जगाने लगा है ॥
शायद वो प्यारा सा लगने लगा है ।
या शायद मुझे प्यार होने लगा है ॥
रविवार, 22 नवंबर 2009
बुधवार, 4 नवंबर 2009
जब तक
जब तक नज़रें थी अपने पर , ख़ुद को ही देखती थी मैं ,
जब से मिली तुम से नज़र, ख़ुद को देखना भूल गई ,
जब तक मिली ना थी तुमसे, खुद को ही जानती थी
जब से मिलना हुआ तुम से, खुद से मिलना भूल गई ,
जब तक रहती थी अपने घर, ख़ुद के साथ ही रहती थी ,
जब से आ गई घर तुम्हारे, खुद के घर का पता भूल गई
जब तक अपनी दुनिया में थी , लौट आती थी अपने ही पास
जब से खोई तुम्हारी दुनिया में, वहां से लौट के आना भूल गई
जब से मिली तुम से नज़र, ख़ुद को देखना भूल गई ,
जब तक मिली ना थी तुमसे, खुद को ही जानती थी
जब से मिलना हुआ तुम से, खुद से मिलना भूल गई ,
जब तक रहती थी अपने घर, ख़ुद के साथ ही रहती थी ,
जब से आ गई घर तुम्हारे, खुद के घर का पता भूल गई
जब तक अपनी दुनिया में थी , लौट आती थी अपने ही पास
जब से खोई तुम्हारी दुनिया में, वहां से लौट के आना भूल गई
रविवार, 1 नवंबर 2009
राह दिखलाओ
ध्यान इक धुंद में कहीं कुछ खो गया है !
मन किसी गहरी नींद में ज्यों सो गया है !!
अरे, एक दीप इस घर में कोई तो जला दो !
मेरे सोए हुए मन को ज़रा झकझोर जगा दो !!
अमावस सा यह जीवन क्यों भला यह हो गया है !
ज्ञान मन का क्यों ह्रदय से दूर कही पर खो गया है !!
कोई तो दे के न्योता आज सूरज को जा लिवा लाओ !
खोए हुए ज्ञान को फिर मेरे घर राह दिखलाओ !!
सैलाब मैं कैसे धरोहर सब मेरी क्यों बह गई है !
और लकीरों में भी तो कुछ छिन गयी कुछ रह गयी है !!
कोई करो मेरे लिए कुछ दुआ कि सैलाब बाँधू !
और फिर संयम सहारा ऐसा बने कि मन को साधूँ !!
मन किसी गहरी नींद में ज्यों सो गया है !!
अरे, एक दीप इस घर में कोई तो जला दो !
मेरे सोए हुए मन को ज़रा झकझोर जगा दो !!
अमावस सा यह जीवन क्यों भला यह हो गया है !
ज्ञान मन का क्यों ह्रदय से दूर कही पर खो गया है !!
कोई तो दे के न्योता आज सूरज को जा लिवा लाओ !
खोए हुए ज्ञान को फिर मेरे घर राह दिखलाओ !!
सैलाब मैं कैसे धरोहर सब मेरी क्यों बह गई है !
और लकीरों में भी तो कुछ छिन गयी कुछ रह गयी है !!
कोई करो मेरे लिए कुछ दुआ कि सैलाब बाँधू !
और फिर संयम सहारा ऐसा बने कि मन को साधूँ !!
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