मैं, तेरी छाया !!
शीतकाल की मद्धिम धूप बनूँ और तुझ पर मैं छा जाऊं
मैं बनूँ ग्रीष्म में छांव, तुझे रह रह कर शीतल कर जाऊं
बन जाऊं बदरिया सावन की, बरसूं मन पर घनघोर पिया
चमकूँ यादों की बिजली बन, ‘बाती’ मैं - तू मेरा ‘दिया’
बन जाऊं शीतल मंद पवन, तेरा तन मन दरसूं-परसूं
बन जाऊं बहती नदिया, कि बन लहरे, मैं हरदम हरसूँ
जल बन कर सारी प्यास बुझादूं तेरे तन मन के उपवन की
तितली बन तुझ पर मंडराऊं, हो जाऊं तेरे मधुबन की