शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

कभी जो फुरसत हो तुम्हे

कभी जो फुरसत हो तुम्हे

दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती है, सहमी सी इक धडकन हर रोज़
सूनी अखियाँ बेबस सी, करती ही रहती हैं तुम्हारा इन्तजार हर रोज़


कभी जो फुरसत हो और सुन पाओ उस दस्तक को तो झांको
दिल की आंखों के झरोखों से तुम पाओगे मेरी बेकसी हर रोज़


बस देख लेना नज़र भर , इस अकेली सी धडकन को
जो सूनी राहों में करती ही रहती है इंतजार हर पल हर रोज़


इक नजर प्रेम भरी जो मिल जाए, जी जायेगी सांसे, थिरक उठेगी
जा बसेगी दिल में, धडकेगी तुम्हारे तन मन में, हर पल हर रोज़


बस ही गए हो जो आंखों में, तो न जाओ इस दिल से भी कभी
बसे रहो धडकनों में - ख्वाबों में - ख्यालों में, यूं ही पल पल हर रोज़