सोमवार, 6 जुलाई 2009

पंख पसारे भोली चिडिया !

पंख पसारे भोली चिडिया !

सोचा तो ये था !
कि सफ़र करते करते उम्रभर ..
जन्मो के सफ़र तय करेंगे ..

मिला जो भी उसे भी साथ ले लिया
कि सफ़र हसीं हो गया
जो छोड़ गए साथ
पर उन को पीछे नहीं छोड़ सके...


ऐसे ही इक दिन
सफ़र के किसी पडाव पर
इक जाना पहचाना सेहर
बचपन का जवानी का सेहर
जो गुजरा नज़र से
जुटा के हिम्मतें बचपन के प्यार की
आँखों में सजा कर सपने पुराने
सब दूरियों से दूर ..


सदियों के फासले पल में तय कर गए
आ गए मेरे मन के घर -आँगन में
जहां आज भी किसी कोने में पड़े थे
सपने बचपन से
कुछ सहमे से इन्तजार में किसी के
उन पर ढल चुकी थी किसी और के हक़ की छाया
जिसे पलकों से अपनी, आपने उघाडा
फिर धो के प्यार के आंसुओं से
और सपने नए से सजाए आप ने
थामा हाथ और ले चले मेले में
बह निकली झरने सी प्यार की निर्झरनी
बैठा के दिल की छाया में
सिखा दिया जीना और प्यार करना


अब उड़ने चेह्काने लगी जो चिडिया
पंख क़तर दिए सैयाद ने
डाला सोने के पिन्जरेमें
और उड़ा ले गया सात समंदर पार
बहुत दूर
इक पत्थरों की दुनिया में
जहां ना मित्र ना प्यार
न प्रीत का संसार


तभी
एक दिन आया कोई मुसाफिर
अनजाने में खोल दिया पिंजरा दिल का
और पंख पसारे फुर हुई चिडिया
जा बैठी सात समंदर पार
फिर उसी दिल के घरोंदे की मुंडेर पर ....

ek dua

क्षितिज के उस पार
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नयनों में
जो पा सकें दरस तेरा

है जो तू हर सू बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगों में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को

ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करूं अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक

दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम

बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवन भर की कड़वाहट ढोंग और नफरतों से
कैसे पड़े तेरी पाक कृपा की नज़र मुझ नाचीज़ पर मेरे हरी

लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्नतें में करूं तुझ से
आँखों में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा प्रभू मेरे

दे दो वो नजर जो दीदार करूं तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे अपनाए
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
माँज डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से

करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरि से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ

बस यही है दुआ मेरे हरि

bhram

रिशवतें देतें हैं हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
ढूँढ़ते हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिझाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हरियालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सू है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किन्तु लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलों के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठते ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता

रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम

वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................

झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गल्तियों का पुतला
अपने लिए तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + दमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझसे
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ सृष्टी तेरी
तू ही है कायनात सारी
सोचूँ महसूस करूं
हर कण में तुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हें हम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं

intjaar

खामोशियाँ छाई रही यूंही बरसों
मदहोश से पड़े रहे जज़्बात मैखाने के किसी कोने में
ढूँढती रहीं मेरी चुप्पियाँ किसी को
दिल मेरा भटका गली गली
भीढ़ में हर चेहरा लगा तेरा ही चेहरा
आवारा सी हो घूमती रही सोच मेरी
मेले में मैं रही अकेली
एक उंगली जो थामी थी बचपन ने कभी
आज बूढी हुई उंगलियाँ
खोजती फिर रही हैं उन्ही स्पर्शों को
शून्य सा हो वक़्त भी चलता रहा थम थम कर
थम गई जिंदगी सदियों पहले से
भागते फिरे जुगनुओं की पीछे रात भर
आवारा ख़्वाबों को बाँध बाढ़ रखते रहे
जिंदगी टंगी रहगी रही दरख्तों पर कटी पतंग सी
आज भी है
इन्तजार इन बुझी बुझी आँखों में

hi raam

घुप अँधेरा
काली स्याह रात अमावास की
चमकती बिजलियाँ
गरजते बादल
बड़ी भयानक रात है
यह जिंदगी

अद्भुत अनोखी
चाँद बादलों में मुँह छिपाए है डर से
तारे भी सब खो गए

घनघोर जंगल है सब ओर
वीराने सन्नाटे खामोशी है सब ओर
फिर भी
अकेले नहीं हैं हम
भीड़ हैं यहाँ
मेला लगा है
मजमें हैं सब और
कहीं नाग सरसराते हैं
तो कहीं उल्लू पुकार कर रहे
कभी सुनती हैं चमगादडों के फड फडाने
की आवाजें
कहीं कहीं से कोई पक्षी भी गलती से चहचहा उठते हैं
यूं तो जुगनू हैं कहीं कहीं
दिल बहलाने को
घबरा के हम एकेले से
ढूँढ़ते फिरते हैं कोई सहारा
पास है इक लाठी सुरक्षा के लिये
बस एक मात्र सहारा
उस का
यूं ही गुजरती रात सी इस जिंदगी में
जब कोई ठोकर लग जाए अचानक
मुख से निकले हे राम
तो इक बिजली सी कौंध जाए हर सू
गूँज जाए इक नाम
हे राम
भागे चले आयें सब चाँद तारे
बादल छत गे डर कर
नई उम्मीदों की किरने आ गिरी झोली में
इक ज्योति छू गई इन बंद आँखों के दीयों में
फैल गया परकाश हर सू
वोह गयी लाठी
खो गए अँधेरे जीवन के
जो थामा हाथ खुद
राम ने
मेरे और कर लिया इस भव सागर से पार
हे राम

ishq

लैला मजनू का ज़माना भी क्या खूब था
हीर रांझा की दुनिया भी निराली थी
इन के इश्क ने कर दिया था जमाना दुश्मन
मुलाकातें थी कितनी अधूरी
मिल ना पाए वोह जिंदगी पूरी
पर आज भी दुनिया किस्से सुनती सुनाती है
की मोहब्बतें थी तो उनकी ही थी पूरी
बचपन का हुआ प्यार
मरते दम तक निभाया
वादा इश्क का मर के भी निभाया
और आज का इश्क
आज भी है बच्चे बच्चे को है
हो जाता है पहली नजर में ही
सेटे लाईट का ज़माना जो है
सब होता है बड़ी रफ़्तार से
ना नज़रों का मिलने
ना वो हिरन ना कबूतर
ना कोई चिठ्ठी ना पत्र
ना डाकिया ना दूत कोई
पल भर में ही
इन्टरनेट पर ही
बिन देखे बिन सुने बिन मिले
एक्सप्रेस मेल की रफ़्तार से होता है इश्क भी
पल में जीने मरने के वादे
पल भर में जन्मों के बंधन
कभी ना बिछड़ने की कसमें
पर जितनी जल्दी यह इश्क की गुड्डी चढ़ती है आकाश में
उतनी ही जल्दी कट के
फड फडाती लडखडाती
कभी इस पेड़ पर तो कभी उस छत पर टंगी मिलती हैं
जो कल हुआ इश्क वोह आज हवा हो गया
और शायद आज नया किसी और से होने को है तैयार
यह इश्क नहीं नज़रों का धोका है
दिल बहलाने को लेकिन ख्याल अच्छा है

soch

कुछ सोच में पड़ गए हैं ख्वाब मेरे
कैसे दे पाऊँगी साथ
कयूं कर चल पाएंगे उन राहों पर
की जज्बात तुम्हारे
ख्वाब भावनाएं सब के सब
हैं सागर से गहर गंभीर
जब से जज्बातों ने मेरी
थामी है उंगली तेरे गंभीर जहन की
कदम कदम चलने की कोशिश कर रहे हैं
गिरते पड़ते
लडखडाते नयी राहों पर
चल पड़े हैं खोजने माजिलें नई
गर बना रहे यूं ही साथ हमारा
थामे रहो तुम हाथ हमारा
तो शायद हो रहेगी सर मंजिलें अपनी
आज जो दिल की जमीन
नहीं पहचानती इन हलके ख्यालों के कदमो को
आज जो सुनाई नहीं देती आवाज इन खोखले ख़्वाबों की
कल जब यूंही साथ साथ चलते हो रहूँगी में तुमसी
ये ही पाँव भारी हो जाएं गे
अपने कुछ नक्श छोड़ जाएंगे
कल आने वाली पीढी फिर इन्ही नक्शे क़दमों पे चल
कर लेंगे मंजिलें सर
जो हम ने किये सफ़र तय
वोह मंजिलें हमारी औलादें पा जाएंगी
जो सफ़र रहगे हमारे अधूरे
वोह करेंगे हमारे बच्चे पूरे
तो शायद होंगे हमारे अधूरे ख्वाब पूरे

churiyaan

चूडियाँ
रंग बिरंगीइंदर धन्नुष सी चूड़ियाँ
लाल हरी नीली पिलीसब रंगून की चूद्रियाँ
माँ बहन पत्नी बेटी भी पहने चूड़ियाँ
मौसो चची भुआ दादी नानीमामी ने भी पहनी चुरियाँ
लाल हरी नीली पिली चुरियाँ


कांच की लाख की स्टील की रबड़ की
सोनेकी चांदी की चूड़ियाँ
घुंगरू वाली वाली नाग्गून जडी नगीने जडी
हर औरत का सिंगार करें हरी भरी चूड़ियाँ


हर अवसर पर पहनी जाएं चूड़ियाँ
लक्ष्मी जो जन्मी पहनाएं काली चूड़ियाँ

नजर न लगे कहीं मेरी दुलारी की चूड़ियाँ
पहने नन्हे हाथ कभी चांदी की सोने की
घुंगरू वाली चूड़ियाँ

रोंनं झुन करती कभी खनकती ी
घर की रौनक चूड़ियाँ

पीले हो जाएं हाथ जो तो पहने
लाल चूडा लाल हरी चूड़ियाँ
सुहागन पहने लाल हरी नीली पिली नीली चूड़ियाँ
माथे टीका नाक में नथनी पायल कुमकुम तगरी झुमके
अन्गोठी कजरा गजरा सब हैं निभाते साथ हैं ऐसी हैं यह चूड़ियाँ
यह सुहागन की चूड़ियाँ

ये सहेली सभीकी लाल हरी नीली पिली
सोने चांदी की कांच की चूड़ियाँ

मैं भी पहनू तुम भी पहन हम सब पहने
यह प्यारी चूड़ियाँ
जीवन भर यह साथ निभाएं पर जब कोई अपना छोरे जाए साथ
टूट टूट जाएं चूड़ियाँ

सगे सम्बन्धी सखी सहेली
मिल कर सभी तोड़ डाले चूड़ियाँ
फिर न सजें ना भाएं
उसी कलाई में वही
लाल हरी नीली पिली चूड़ियाँ

सुख के दुःख की कथा सुनें यह रंगीली चूड़ियाँ
बचपन में खिलौने टूटी फूटी चूडिआं
सुहागन के दिल के तुक्रे यह रंगीली चूडिआं
विधवा की दुःख भरी कहानी यह निगोरी चूड़ियाँ
हाय
कितनी प्यारी हुआ करती यह चूड़ियाँ
अब न भाएं यह सारी चूड़ियाँ

हर औरत का गहनाहर कुंवारी का सपना
हर बच्ची का शौंक हर अल्हड का सजना सजाना चूडिआं

कितनी प्यारी बहुत सारी मन को भाएं कलाई मेंसज जाएं
लाल हरी नीली पिली यह सारी चूडिआं