शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

न जाग पाऊं कभी

तो जगा देना मुझे

पाप हो जाये अगर

तो सज़ा देना मुझे


अंधे हैं हम सब
इस अंधेर नगरी में
ठोकर खा कर गिर पडून
तो हाथ बाधा उठा देना मुझे


सोया है मन सो गई आत्मा
दुनिया की भीढ़ में खोया अस्तित्व
झाक्जोर कर

जगा देना मुझे


हे प्रभु,

उंगली पकड कर

तुम मुझे अवलम्ब दे दो

ठगिनी बहुत,

माया जगत की,

ये नचा दे ना मुझे ....

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

खेल रही मृगछौने सी कमरे कमरे धूप,

चिडिया चीं चीं कर उठी खिला धूप का रूप ॥

खिला धूप का रूप बसंती मौसम आया,

किस बाला ने किस कूंची से इसे सजाया ॥

रूप अनोखा सज उठा छुप गया रूप चितेरा
मन वीणा भी बज उठी, कण कण हुआ सवेरा ॥

छम छम करती देखो होथूं पर मुस्कान चली आई
चमक चांदनी सी अखियूं में पहचान चली आई

रुन झुन करती बागो में लो हर काली आई
झोली भर खुशीआं ले में भी तेरी गली आई

घर आँगन में रौनक यह यूं भली आई
लो आज बसंती हवा यह संदेसा लाइ

खूब खिलो हसो महको सब आज बसंत ऋतू आई