रविवार, 8 अप्रैल 2012

प्यार का रंग लाल गुलाल

ना हास्य ना व्यंग
में तो जानू बस एक ही रंग
प्यार का रंग लाल गुलाल
ना वीर रस ना भद्र रस
में तो जानू बस सिंगार रस
मेरे प्यारे प्यारे प्रीतम का रंग
अपने प्यारे का रंग
लाल गुलाल

सुनते ही नाम होली का
में तो बस अपने कान्हा ही होली
में प्रहलाद की होली
रंगों किहोली में
में अपने प्रीतम की होली

लो आई होली आज लो आई होली
भांग चदा कर
ढोल बजा कर
मुह पर मल कर गुलाल
घूम घूम कर गली गली नाच नकच कर
कर के हाल बे हाल
लो आज आई रे होली
लो होली आई रे आज

देखा इधर और देखा उधर
सबकी बदली है आज चाल
बचे बुद्धे जवान सभी
सूझवान अल्हध हो या हो नादाँ
ले कर हाथूं में रंग
हरा हो या हो लाल
सभी मिल रहे गले लगें सब खुश हाल

गली गली भागती दौरती
अभी इस गली तो अभी उस गली होली
रे होली
लो आई रे होली
होली आई रे आज

पर इस बीच कयूं कर में भूलूँ
उस अपने को
जो है मेरा लाल गोपाल
कर के उस का ध्यान में आज
कयूं ना में उस की होली

लो में तो होली जी
उस अपने की होली
आओ सब मिल कर गले ले कर हथून में गुलाल
चलें उस के घर जहाँ हेई बसा हमारा लाल गोपाल
मिल कर अपने प्रीतम से
कर लें आज हाल बे हाल
कयूं के

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल
लाली देखन में गई मेंन भी हो गई लाल
हम सब को होली के इस सुब्ह अवसर पर ढेरों सुब्ह कामनाएं

आली रे होली

आली रे होली सखियों आज होली आली रे
पी कर सुब्ह सवेरे चाय की प्याली
भर कर बाल्टी रंगों की सभी खली खली
आली रे आली भाइयो आज होली आली रे
सब सखियाँ हेंरंगी यूं ज्यों फूलों की डाली
भाई भी सभी ऐसे मेंकयूं रहे खाली जी खाली
भर कर लाओ भांग गिलास हो या हो पियाली
नहीं बचे गा कोई आज जीजा हो या हो साली
आली रे होली उम्मा आज होली आली रे
रंग डालो सभी आज नहीं देगा कोई भी गली
कैसा भी हो रंग चेहरे का छाई है फिर भी लाली
धूम मचा कर भंग चदा कर ले कर रंगों से लाली
मिल कर कर गले हमने आज हर ख़ुशी है पाली
आली रे होली बाप्पा आज होली आली रे आली

ऐसा हो नहीं सकता

आंसुओं की लगी हों कतारें
या हों यादूं के सिलसिले
और तेरा जिक्र नहो
ऐसा तो हो नहीं सकता


उदासियूं का मेला लगा हो
या हो रौनके चुपिऊँ की
और तेरा जिक्र ना हो
ऐसा हो नहीं सकता

वीरानू का हो जमघटा
या हो तन्हाई की बातें
और तेरा जिक्र नहो
ऐसा तो हो नहीं सकता

यूंही जाड़ों की करें कहानियां अगर
या सूखे पते मिलें किताबून मेंकभी
और तेरा जिक्र ना हो
ऐसा हो नहीं सकता

टूटते ख्वाबून की आहट हो
या हों लम्बी काली रातोकी बातें
और तेरा जिक्र ना हो
ऐसा तो हो नहीं सकता

कभी विदा करें जो किसी को
किसी मोडपरयूं ही रुक जाएं जो कदम
और तेरा जिक्र ना हो
ऐसा तो हो नहीं सकता

वोह कहींदिखई देता नहीं

कभी कभी ऐसा लगता है
साथ अपना छूट गया है कहीं पीछे

हाथ जो खुद का थाम रखा था खुद ने
आज कल पकद में आता नहीं

देख कर आईने में अक्स अपने
पहले देखा है कहीं
ऐसा लगता नहीं


अपने ही स्पर्शून को महसूस कर पाते नहीं
खुद से बातें करने की आदत सी छुट गई है पीछे कहीं

इतना शोर है तन्हाइऊन का
फिर भी
जो तुम कहा करते थे
आज भी स्पष्ट सुनाई देता है

खुली हो या हूँ बंद यह आँखें
इन्मेंजो इक अक्स दिखा करता था
वोह कहींदिखई देता नहीं