दिन है पर किरणे बुझी बुझी 
 हवा भी बोझिल थकी थकी 
 मायूस पेड़ भी झुके झुके 
 पत्ते कुम्हलाए झरे झरे 
 फूल उनींदे थके थके 
 वीरानापन, जग भर पसरा 
 सन्नाटा ही सन्नाटा 
 दिन ऊंघ  रहे गलियारों  में  
 रातें उनींदी जगी जगी 
बिसर गए प्रीतम तुम जब से
 बिसर गए प्रीतम तुम जब से
मौसम कितना वीराना है .. 
 
