जानती हूँ मेरे चले जाने के बाद
मुझ से बिछ्र के जाने के बाद
तुम्हें भीमेरी तरह मेरी याद तो बहुत आती होगी
जब जब बस अड्डे से गुजरते होगे
मेरी याद तो जरूर आती होगी
जब भी घर की देहलीज से कोई लौट लौट जाता होगा
उस में भी मेरी ही परछाई दिखाई देती होगी
कभी जब लम्बी ड्राइव पर अकेले जाते होगे
फ्रंट सीट का खाली पन अखरता होगा
और तब तो मेरी याद अवश्य ही आती होगी
जब जब एकेले बैठ चाएय के कप पे कप पीते होगे
तो कोई साथ दे उस के लिएय ही सही
मेरी याद तो फिर भी आती ही होगी
जब भी कोई करता होगा शिकवा शिकायत
मेरी याद दिलाता तोहोगा
लडू चाहे किसी से लड़ाई मेरी भी याद आती तो होगी
जब जब किताब पड़ने को बैठे होगे
उन में पड़े सूखे पत्ते याद मेरी दिलाते ही होंगे
उस काले बक्से से जब जब पुराने ख़त निकल पड़ते होगे
मेरी याद मुमकिन है सताती तो होगी
हर रोज़ जब निकालते हो चदर की सिलवटें
तो याद मेरी है जो तुम से लिपट लिपट जाती होगी
जब जब फ़ोन की घंटी बजती होगी
तुम्हें लगता तो होगा की मेरी ही कॉल होगी
रोज़ कोम्प्पुटर ऑन करते ही मेरे सन्देश ना पा कर
मेरी बहुत याद आती होगी
हर छूती के दिन इन्तजार करते होगी जब मेरे
में नहीं आती तो मेरी याद तुम्हें बहुत सताती तो होगी ना
इक बार जो बुला लोगे प्यार से में लौट आऊंगी
में गया वक़्त नहीं की फिर आ ना सकूं
बस एक बार आवाज दे कर तो देखो
लो में तो आ भी गई
रविवार, 5 जुलाई 2009
achetan mein
क्षितिज के उस पार
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नैय्नूं में
जो पा सकें दरस तेरा
है जो तो हर सु बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगून में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को
ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करून अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक
दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम
बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवान भर की कड़वाहट दोंग और नाफ्रातून से
कैसे पड़े तेरी पाक किरपा की नज़र मुझ ना चीज़ पर मेरे हरी
लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्तें में करून तुझ से
आन्खून में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा परभू मेरे
देदो वोह नजर जो दीदार करून तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे उपनाएं
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
मांझ डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से
करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरी से हरी से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ
बस यही है दुआ मेरे हरी
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नैय्नूं में
जो पा सकें दरस तेरा
है जो तो हर सु बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगून में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को
ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करून अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक
दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम
बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवान भर की कड़वाहट दोंग और नाफ्रातून से
कैसे पड़े तेरी पाक किरपा की नज़र मुझ ना चीज़ पर मेरे हरी
लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्तें में करून तुझ से
आन्खून में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा परभू मेरे
देदो वोह नजर जो दीदार करून तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे उपनाएं
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
मांझ डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से
करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरी से हरी से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ
बस यही है दुआ मेरे हरी
tum ho to
रिशवतें देतेंहें हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
दूंध्तें हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिजाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हर्यालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सु है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किनतू लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलूँ के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठे ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम्देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता
रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम
वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................
झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गलतियूं का पुतला
अपने लिएय तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + डमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझ से
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ श्रृष्टि तेरी
तू ही है कायनात साड़ी
सोचूँ महसूस करून
हर कर्ण मेंतुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हेंहुम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
दूंध्तें हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिजाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हर्यालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सु है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किनतू लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलूँ के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठे ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम्देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता
रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम
वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................
झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गलतियूं का पुतला
अपने लिएय तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + डमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझ से
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ श्रृष्टि तेरी
तू ही है कायनात साड़ी
सोचूँ महसूस करून
हर कर्ण मेंतुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हेंहुम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं
rail ki dopatriyaan
rail ki do patriyaan
aamne saamne rehte bhi
milti naheen kabhi
door bahut door
aabhaas hota hai unke milne ka
par kahaan mil pati hein taa umar
par humyoon to juda naheen hein
hum mile thei bichharne ko
he shaayad aur shukar hai na malki ka
kiaaj bhi hein to aamne saane
bhale hi milte naheen
milte hein kabhi kabhi
bhale hi milte hein
jub koi tisri patri
aa kar humein jore deti hai
hum jure hein
humari soch
humara ateet
humari udaan
humare nek irade
humare wishwaas
bharose humare
humare sukh
humari khushiyaan
woh bachpan ki sharartein
woh ma ki maar
woh jhule se girna
woh choti choti sanjhein
woh lardna jhagarna
woh pyaar
woh sehme sehmein hum
wih raaz woh beeteen batein
woh mil ke rona woh bicharna
woh hasna
aur phir se woh pyar
yeh sub jore hai hum ko tum ko
phir bahle hi na milein
woh rail ki do partiyaan
hum hein to saath
aamnei saamne
maano thame hoon haath
umar bhar ke liey
ek patri kabhi
doosri ko peeche
ekele naheen chorti
rakhti hai saath
woh rail ki do patriyaan
aamne saamne rehte bhi
milti naheen kabhi
door bahut door
aabhaas hota hai unke milne ka
par kahaan mil pati hein taa umar
par humyoon to juda naheen hein
hum mile thei bichharne ko
he shaayad aur shukar hai na malki ka
kiaaj bhi hein to aamne saane
bhale hi milte naheen
milte hein kabhi kabhi
bhale hi milte hein
jub koi tisri patri
aa kar humein jore deti hai
hum jure hein
humari soch
humara ateet
humari udaan
humare nek irade
humare wishwaas
bharose humare
humare sukh
humari khushiyaan
woh bachpan ki sharartein
woh ma ki maar
woh jhule se girna
woh choti choti sanjhein
woh lardna jhagarna
woh pyaar
woh sehme sehmein hum
wih raaz woh beeteen batein
woh mil ke rona woh bicharna
woh hasna
aur phir se woh pyar
yeh sub jore hai hum ko tum ko
phir bahle hi na milein
woh rail ki do partiyaan
hum hein to saath
aamnei saamne
maano thame hoon haath
umar bhar ke liey
ek patri kabhi
doosri ko peeche
ekele naheen chorti
rakhti hai saath
woh rail ki do patriyaan
सदस्यता लें
संदेश (Atom)