रविवार, 1 नवंबर 2009

राह दिखलाओ

ध्यान इक धुंद में कहीं कुछ खो गया है !
मन किसी गहरी नींद में ज्यों सो गया है !!

अरे, एक दीप इस घर में कोई तो जला दो !
मेरे सोए हुए मन को ज़रा झकझोर जगा दो !!

अमावस सा यह जीवन क्यों भला यह हो गया है !
ज्ञान मन का क्यों ह्रदय से दूर कही पर खो गया है !!

कोई तो दे के न्योता आज सूरज को जा लिवा लाओ !
खोए हुए ज्ञान को फिर मेरे घर राह दिखलाओ !!

सैलाब मैं कैसे धरोहर सब मेरी क्यों बह गई है !
और लकीरों में भी तो कुछ छिन गयी कुछ रह गयी है !!

कोई करो मेरे लिए कुछ दुआ कि सैलाब बाँधू !
और फिर संयम सहारा ऐसा बने कि मन को साधूँ !!