मंगलवार, 9 जून 2009

yaad

यादें इकठा कर
बुनती हूँ सपनो की चादर
रोज़ रात
ओढ़ के सो जाती हूँ

सुभह होते ही दिन चडते ही
आँखें खुलते ही
सुब उधेड़ देती हूँ चादर
दिन भर रहती हूँ खोई खोई
तेरे ख्यालूँ में रोई रोई
तुझ से करती हूँ बातें
हमेशां तुझे ही पास पाती हूँ

तुझ से मिलने की आस
तुहे देखने की प्यास
दिन भर दौडाती है
जिन्दा रख पाती है
तेरी याद तेरी प्यास
तेरी आस की फिर बुनती हूँ
चादर इक
सपनो की और सपनोमें खो जाती हूँ

allah

एक एकेली न कोई सहेली
मैं अलबेली नार नवेली

पर नहीं में अकेली
की अल्लाह है मेरा बेली

करती हूँ खुद से बातें
कहाँ गई वोह अकेली रातें

धरती मेरा बिछोना
अम्बर है मेरा ओड़ना

सागर मेरी कश्ती
यह कायनात मेरी हस्ती

मौजें मेरी पतवार
जाना है मुझे उस पार

प्रीतम की बाहूं में
बिछ जाऊं गी राहून में

मैं नहीं किसी की मुहताज
साथ है मेरे मऊला आज

मैं कहाँ एकेली
जब अल्लाह मेरा बेली

justjoo

उमंगें
उमीदें
आसरे
सहारे
आरजुएं
इच्छाएं
तमन्नाएं
इन्तजार
सब पुरे हुए
आज
अभी
इसी वक़्त
इसी घडी
जैसे ही
नाम इक
देखा
जाना पहचाना