यादें इकठा कर
बुनती हूँ सपनो की चादर
रोज़ रात
ओढ़ के सो जाती हूँ
सुभह होते ही दिन चडते ही
आँखें खुलते ही
सुब उधेड़ देती हूँ चादर
दिन भर रहती हूँ खोई खोई
तेरे ख्यालूँ में रोई रोई
तुझ से करती हूँ बातें
हमेशां तुझे ही पास पाती हूँ
तुझ से मिलने की आस
तुहे देखने की प्यास
दिन भर दौडाती है
जिन्दा रख पाती है
तेरी याद तेरी प्यास
तेरी आस की फिर बुनती हूँ
चादर इक
सपनो की और सपनोमें खो जाती हूँ
मंगलवार, 9 जून 2009
allah
एक एकेली न कोई सहेली
मैं अलबेली नार नवेली
पर नहीं में अकेली
की अल्लाह है मेरा बेली
करती हूँ खुद से बातें
कहाँ गई वोह अकेली रातें
धरती मेरा बिछोना
अम्बर है मेरा ओड़ना
सागर मेरी कश्ती
यह कायनात मेरी हस्ती
मौजें मेरी पतवार
जाना है मुझे उस पार
प्रीतम की बाहूं में
बिछ जाऊं गी राहून में
मैं नहीं किसी की मुहताज
साथ है मेरे मऊला आज
मैं कहाँ एकेली
जब अल्लाह मेरा बेली
मैं अलबेली नार नवेली
पर नहीं में अकेली
की अल्लाह है मेरा बेली
करती हूँ खुद से बातें
कहाँ गई वोह अकेली रातें
धरती मेरा बिछोना
अम्बर है मेरा ओड़ना
सागर मेरी कश्ती
यह कायनात मेरी हस्ती
मौजें मेरी पतवार
जाना है मुझे उस पार
प्रीतम की बाहूं में
बिछ जाऊं गी राहून में
मैं नहीं किसी की मुहताज
साथ है मेरे मऊला आज
मैं कहाँ एकेली
जब अल्लाह मेरा बेली
justjoo
उमंगें
उमीदें
आसरे
सहारे
आरजुएं
इच्छाएं
तमन्नाएं
इन्तजार
सब पुरे हुए
आज
अभी
इसी वक़्त
इसी घडी
जैसे ही
नाम इक
देखा
जाना पहचाना
उमीदें
आसरे
सहारे
आरजुएं
इच्छाएं
तमन्नाएं
इन्तजार
सब पुरे हुए
आज
अभी
इसी वक़्त
इसी घडी
जैसे ही
नाम इक
देखा
जाना पहचाना
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