मंगलवार, 26 मई 2009

chaand

चाँद को देखो
कितना सुन्दर कितना प्यारा
पर हे उस के मनमें दुःख का दाग़
ले कर कासा भीख का हाथ ्मे
रोज़ करे मिन्नत
सूरज की
तरसे प्रीत की चांदनी को
मांगता फिरता
एक बूँद प्यार की
कभी जो रवि को तरस आजी
टपका दे बूँद इक प्यार के
ख़ुशी से फूला न समता हो रहता हेई चाँद पहेली का
फिट उसी ख़ुशी में देखो देखो
हो चला हे दूझ का वोह
फिर इतराता होता तीझ का
और चौथ का हो रहता
कभी जो प्रस्संं हो जाय रवि देवता प्रकाश का
तो हो रहता यह चाँद प्यारआ चौदवीं का
चाँद हमारा

thoonth

सरक के किनारे खरा में
एक बहुत पुराना एकला ठूंठ हूँ में

रोज़ इसी इन्तजार में हूँ
की पल भर को कोई आएय और आके मेरा हाल बताएं
में भी कुछ पाऊँ कुछ खो दो उस के मिलने में
कभी बुझेई मेरी भी प्यास
हाँ आतें थे
कभी कभार
मेरी छाया का सुख भोगने पल दो पल को
मुसाफिर देते थे चल अपनी अपनी राह
में वही खरा
एकला फिर तकता हूँ राह किसी दूजे की
मीठी ठन्डी छाया
मधुर खुसबू मेरे पतूं
फूलों की
मीठा स्वाद मेरे फलूं का
सुब चखते थे
पर मेरा कोई हो जाए सदा के लिएय ऐसा कभी न होपाया
इस मतलब के संसार में सुब मिलते हैं कुछ ले जाने को
बिचर जातें हैं तरपाने को
करके वादा फिर मिलने का
कभी न लो़त कर आतेइहें
कुछ ऐसा ही है
दस्तूर यहाँ का
ले ले ते हेई भूल जातें हैं देना
तभी तो हूँ में आज भी अकेला