बुधवार, 8 जुलाई 2009

seep ka moti

बचपन की इक भली सी याद
आज भी है मेरे पास
छुपा के रखी है नज़रों से दुनिया की
की लग ना जाई नजर दुनिया की
बचपन की मीठी सी याद
जब सपने मेरे
तुम देखा करते थे मेरी आन्खून में
हाथ थाम कर ले जाते
दूर बहुत दूर मुझे मेरे ही ख्वाबो की दुनिया में

जवान हों सपने इस से पहले
पहचाने चेहरा तुम्हारा उस से पहले
छोर मेरे सपनो का साथ
रहने चल दिए तुम किसी और के सपनो के साथ

बरसों झाँका हर नजर में
ढूँढती रही सपनो को अपने
खोजा तुम को हर रोज़ नींदों में
गली गली रातों की छानी

हर अनजाने को समझा तुम हो
हर कागज़ के टुकरे को समझा ख़त तुम्हारा
हर पते को समझा पता तुहारा
ना नाम ना निशाँ ना कोई ख़त ही मिला तुम्हारा

अधूरी थी कोशिशें मेरी
तभी ना हो पाईं पूरी
भूल गई मैं हार गई मैं
थाम लिया सच का दामन
मान लिया तुम ना आओगे

बंदकर सपनों को काले बक्से में
कर दिया जुदा हो गई बिदा
चली दी ससुराल हुई बेहाल

भूली बचपन के सपने
मिलगे सब मेरे अपने
यूंही जीती रही ले खाली खाली रातें
बिन सपनो के मिली बच्चों की सौगातें

फिर इक दिन यूंही सदियों बाद
लो आई फिर तेरी याद
कानो ने सुनली दिल की पुकार
देखी सूरत जानी पहचानी
सुनी कहानी सुनी सुनाई

घबराई सी बहकी बहकी बात
आ कर थामे मेरे हाथ
जागने लगे मेरे बचपन के खाब
सपने सभी लौट आये आज

बहार निकली फिर अपने सीप से
बनने को मोती
मचला मन बहुत कोशिश की
काश में उन की होती

पलक झपकते टुटा सपना
वोह ना था कोई अपना
आज फिर मेने देखा वोह सपना
जो कभी ना हो पाया अपना

रह गई अपना सा मुह ले कर
बंद हो गई में फिर सीप में
बस गई सीप को अपना घर कर
सो गई में फिर रो रो कर

काश में ना होती सीप का मोती
काश में तुम्हारी होती
फिर ना कभी में यूं रोती
रात भर में उस सपने के संग सोती