बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

घनी इक छांव से हो तुम


सुहानी शाम से हो तुम
बसंत बहार से हो तुम

घनी इक छांव से हो तुम
सुकूँ-आराम से हो तुम


मधुर संगीत से हो तुम
मधुर झंकार से हो तुम

मधुर मुस्कान से हो तुम
मेरी तो शान से हो तुम

कोई सपना सा हो तुम
मेरा अपना सा हो तुम

मेरे दिल की धडकन तुम

मेरी सांसों की सरगम तुम


अनबुझी-प्यास से हो तुम

अनकही-आस से हो तुम

मेरी तो जिंदगी हो तुम
मेरी तो जान ही हो तुम ........

एक उदास सांझ ...


पतझड़ के सूखे पेड

मुरझाए फूल

पथरीली चट्टान

ठहरे झील के पानी से

रात अमावस की

कडकती दोपहरी बैशाख की

तूफानी हवाएँ

वीरान फिज़ाएँ

इतनी खामोशी

कभी उदासी हो नाम हमारा ...

कभी कहानी

अधूरी सी

तो कभी कविता

अनकही

टूटते सपने कहीं

नाउम्मीदी कभी

जो भी हों

जहां भी हों

हम

दुःख ही होते हैं

दुःख ही देते हैं

क्या उदासी ही है नाम हमारा ?