न आती देखी
न देखी कभी जाती
सब कहते हैं
यह राह मुझे
मेरी मंजिल पहुचाती
रहती सदा स्थिर
एक ही करवट
ता उम्र
मिटती जाती
आह न भरती
जलती दिन भर
कड़कती धुप में नंगे पाँव
सरपट भागती जाती
जड़े में भी न मौजे पहने
न जूते न चपल
बर्फ सी ठंडी हो जुम जाती
कौन सुने इस के कहने
न गिला करती न शिकवा कोई
कहने सब के माने
घर पहुंचाए काम ले जाए
सब के सब हैं इस के अपने
पर न होती किसी यह
जब राह भूलती जिस को यह
न मंजिल न काम पहुंचती
कहाँ रह गया घर
जाने किसको
गर न होती राहें
तो मंजिल काम न घर ही होते
होते भी सब
पर कोई पहुँच न पाता
बिन राहों के पहुंचे कौन