खेल रही मृगछौने सी कमरे कमरे धूप,
चिडिया चीं चीं कर उठी खिला धूप का रूप ॥
खिला धूप का रूप बसंती मौसम आया,
किस बाला ने किस कूंची से इसे सजाया ॥
रूप अनोखा सज उठा छुप गया रूप चितेरा
मन वीणा भी बज उठी, कण कण हुआ सवेरा ॥
छम छम करती देखो होथूं पर मुस्कान चली आई
चमक चांदनी सी अखियूं में पहचान चली आई
रुन झुन करती बागो में लो हर काली आई
झोली भर खुशीआं ले में भी तेरी गली आई
घर आँगन में रौनक यह यूं भली आई
लो आज बसंती हवा यह संदेसा लाइ
खूब खिलो हसो महको सब आज बसंत ऋतू आई