बुधवार, 24 जून 2009

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kabhi kabhi

कभी कभी मन करता है ...

कैसा रिश्ता है यह मेरे तेरे बीच कि
समझ पाऊँ मैं न इसे न तुझे ...

कभी कभी मन करता है ...

कि आइना बनू मैं तेरा
और नहला दूं तुझे प्यार भरे आंसुओं के गुन गुने जल से
बना के पलकों का तौलिया पौंछ दूं बदन तेरा
पहनाऊँ स्पर्शों के वस्त्र अपनी नरम अँगुलियों से
कभी कभी मन करता है ...

प्रीत के आभूषणों से सजाऊँ तुझे
तू सज जाए क्षमा दया सहिष्णुता से
सुशोभित करूँ श्रद्धा का ताज,
मान सम्मान से माथे पर तेरे
बैठा कर दिल के सिंहासन पर
देदूं सारा राज पाट मेरे जीवन का तुझे
कभी कभी मन करता है ...

संभाले बाग़ डोर मेरे सांसों की तू
देदूं कुंजियाँ अपनी भावनाओं की तिजोरी की तूझे...
बन माँ बहिन बेटी सखी या प्रियतमा तेरी
जी भर प्यार परोसूं हर पल थाली मैं तेरी

कभी कभी मन करता है ...

या कि कभी जीवन संगिनी बनू मैं तेरी
या भांत भांत के रिश्तों से रिझाऊँ बहलाऊँ तुझे....

पिता भाई सखा बेटा प्रियतमसाथी
कुछ भी बने तू मेरा
जो मेरा अपना हो
हिस्सा हो मेरी साँसों का

कभी कभी मन करता है ...

मैं आइना बनू तेरा तू मेरी परछाई हो ...
यह कैसा रिश्ता है बीच मेरे तेरे
न मैं समझ पाऊँ इसे न तुझे