क्या यही प्रीत है
जो मद्धिम हवा के झोंके सी
जो झरने के मीठे पानी सी
जो प्रीत के आंसू सी खारी
जो श्रम-संचित बूँद पसीने की !
क्या यही प्रीत है ??
जो खुशबू का एहसास लिए
जो चाहत की मीठी प्यास लिए
मिलने का इन्तजार लिए
नज़दीकी का एहसास लिए
क्या यही प्रीत है ??
जो वियोग डर से कम्पित
जो तन्हाई भय से शंकित
वो रुनझुन से करती छा जाती
अकस्मात ही आ जाती
वो बने काव्य, और भा जाए
तो प्यार न कैसे हो जाए
डर है ये टूट न जाए लड़ी
जिससे मेरी हर याद जुडी
कविता है बस्ती है मन में
अटखेली करती मन आँगन में
क्या यही प्रीत है ??