धरकन इक छोटी सी बिछड़ी दिल से कुछ ऐसे
उंगली जो थमी थी बरसो से छूट गई हो जैसे
नन्ही सी आन्सो की बूँद पलकों से टपकी कुछ ऐसे
दर्द का सह्लाब बह निकला हो जैसे
वक़्त के हाथों से लम्हा इक गिरा यूं
पछता रही हूँ आज भी इक यह हुआ कयूं
कतरा कतरा जिंदगी रोई कुछ ऐसे
तिल तिल कर जले दिए में लौ जैसे
सान्सून की लड़ी से सांस इक गिर गई कयूं
आखिर तुम मुझे छोड़ कर चल दिए कयूं
याद इक छुट गई पीछे कहीं सदियूं से परे
जब से रहने लगे हो तुम हम से कुछ परे परे