मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हां तुम कुछ ऐसा ही करना

हां तुम कुछ ऐसा ही करना


हां कुछ ऐसा ही करना

अपने नैनों से

अपने कानों से

अपने स्पर्श से



मेरे अस्तित्व में

समाहित हो कर

मेरे भीतर बहकर . रहकर ..

अपनी दृष्टि दे कर मुझको

अपनी शक्ति देकर मुझको

बस जाओ यूं कि ...

हां कुछ ऐसा ही करना


होंठ मेरे हों गीत तुम्हारे

स्वर मेरे हों कंठ तुम्हारे

हर सिहरन, ज्यों तुम छूते हो

हर धडकन, ज्यों तुम बसते हो

बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...

हां कुछ ऐसा ही करना





चेतन में अवचेतन में तुम

जाग्रत में हर सपने में तुम

इस युग में हर जन्मों में तुम

मेरे भीतर बहकर . रहकर ..

अपनी दृष्टि दे दो मुझको

अपनी शक्ति दे दो मुझको


फिर से दे दो मुझे वो शुचिता

स्वच्छ हो सकूं बनूं अमृता

कौमार्य मेरा फिर मुझ मे भर दो

सुहाग बनो तुम सांसे भर दो !

बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...

चेतन से अवचेतन कर दो ...



बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...

हां तुम कुछ ऐसा ही करना

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