सूने नयनों के कौरों से,
देखे हैं टपकते सपने मैंने
चाहा तो था कि दौड़ कर चूम लूं
पलकों  पे सजा लूं अपनी
थाम लूं लबों से,
अपना बना लूं , तेरे सपनों को
इस से पहले कि ये सपने
 नसीब के हाथ से छूटे , टूटे और बिखर जाए ..
 इन्हें नींदे मिलें , मंजिल मिले..
कि इसी कोशिश में  समेट लूँ सारे गम भी  तेरे  ...
यह दिल है कि उधेड़ता बुनता रहता है तमन्नाएँ , हसरतें 
कि  तेरे साथ हो  शुरू  फिर एक   कहानी  प्रीत की
और फिर से , मचलने लगे दिल
हो फिर से  धड़कनों  में हरारत 
दिल फिर से करे बातें  तेरी रात रात भर ...
मैंने अपनी मुस्कानों में से
कुछ मुस्काने संजोई हैं  जीने के लिए तेरे खातिर...
 कुछ साँसे भी माँगी हैं  सीने के लिए तेरे खातिर ...
 
अफ़सोस !
किस्मत बड़ी है और बहुत छोटे हैं मेरे हाथ
अंजुली  भर ना पाई खुशियाँ का साथ
खोखली खुशियाँ सूनी मुस्काने
अधूरी कहानी फीकी प्रीत
अँधेरी रातें  खाली हाथ....
मैं  संभाल न  पाई तेरे  सपने की सौगात ....
आज भी हैं सपने मुझ पर उधार है तेरे
मुझे  माफ़ करना मेरे  मन मीत
कि  गुनहगार  हूँ मैं तेरी
 
