कलाई पे बंदी
याद दिलाती अपनी हर वक़्त
वक़्त याद दिलाती धरी
घरियाँ पहने तोरें बनाएं
ख़रीदे बेचे घरियाँ सब
ले ले कभी दे दे तोफे में
घरियाँ सब
दिन रात गिनते हम घरियाँ सब
पर इक ने मिलती
जिसे कह पते अपनी
जो हो के रह जाती अपनेइ
थम जाती साथ निभाती
कभी न मिल पति घरी इक
कहते सब मिल बीइठो घरी दो घरी हमारे संग
पर कहाँ किसी की हो कर रहती घरियाँ
जो बाँध बाँध
रखते कलाईयूं पर हम सब
बुधवार, 3 जून 2009
antim ghari
टिक टिक टिक करती
दीवाल पे तंगी
कहती मन को टिक टिक
टिकने को कहती
पर न टिका पाती वक़्त
दो हाथ चलते
लगातार चलती बिन पेरून के
चलता वक़्त दिखाती
खुद देखो हे टिकी हुई
दीवाल पर घरी
बुलाती हर दम संन्नाते में गूंजती
सोते को जगाती
फिर खुद ही सुलाती वाकर पर
दीवाल पे तंगी घरी
सुब को भगाती काम पौन्चाती
फिर घर भी ले आती वक़्त पे
खुदही दीवाल पे तंगी घरी
जल्दी मचाती
परेशान करती
टिकी हुई भी कहती
चल चल जल्दी चल
खुद न कभी जल्दी करती
दीवाल पे तंगी घरी
यूं हो जीवन भर चलती
कभी न आक्ती
कभी न थकती
चलती चलती
दीवाल पे तंगी घरी
बस यूं ही इक दिन
चलते चलते
सुब छूट जाते पीछे रह जाती तंगी दीवाल पे घरी
जब आ जाती किसी की अंतिम घरी
दीवाल पे तंगी
कहती मन को टिक टिक
टिकने को कहती
पर न टिका पाती वक़्त
दो हाथ चलते
लगातार चलती बिन पेरून के
चलता वक़्त दिखाती
खुद देखो हे टिकी हुई
दीवाल पर घरी
बुलाती हर दम संन्नाते में गूंजती
सोते को जगाती
फिर खुद ही सुलाती वाकर पर
दीवाल पे तंगी घरी
सुब को भगाती काम पौन्चाती
फिर घर भी ले आती वक़्त पे
खुदही दीवाल पे तंगी घरी
जल्दी मचाती
परेशान करती
टिकी हुई भी कहती
चल चल जल्दी चल
खुद न कभी जल्दी करती
दीवाल पे तंगी घरी
यूं हो जीवन भर चलती
कभी न आक्ती
कभी न थकती
चलती चलती
दीवाल पे तंगी घरी
बस यूं ही इक दिन
चलते चलते
सुब छूट जाते पीछे रह जाती तंगी दीवाल पे घरी
जब आ जाती किसी की अंतिम घरी
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