शुक्रवार, 10 जून 2011

सजा लो पलकों पर आंसू बना
>झंकार बना रख लो अपने साजून की तारून पर
>कर लो शामिल अपने गीतूनमें
>बना लो मुझे अपने बोल
> चाहे गम ही अपना समझ
>बसा लो दिल में
> बिठा लो अपनी यदुन की कतारों में कभी
>रख लो अपनी धर्कनूमें
>रूह से चिपका लो मुझे
>आपने स्पर्शून्में से कुछ सपर्श बाँट लो मेरे साथ
> रख लोअपने भीतर कहींभी
>टीस सीने की चुन्हन चाहे हो रहूँ मन की
>देदो ना थोड़ी जगह अपनी जिन्दी में मुझे भी
>की जी जाऊं में पल दो पल
>साथ तुम्हारे
>नजर भर देख लो एक बार जो
>जी जाऊं में युगून तह यूंही
>--
>नजरूं से उतर कर
> चल के के पाऊँ पाऊँ
>धर्कनू पर हो कर सवार
>लगाम ले कर हाथूं में
>दौराते घोड़े अपनी धरकनो के
>छू लो मुझे
>थाम लो मेरे हाथ आज
>समेट कर सब अपने जज़्बात
>रोक लो साँसे अपनी
>खो जाओ
>सपनो में
>और आ जाओ ..........................
>
>मेरे दिल के आगोश में ............
>
> बस रहो
> कर लो घर इसे अपना
> की आज घर पर कोई नहीं
>बस में और तुहारी यादें
>खेल रही हैं आंखमिचोली
>
>अब चले भी आओ ना सताओ
>की थक गई हैं साँसे मेरी
>अब नहीं तक सकती और राह तुम्हारी
>मेरी नजर कमजोरे हो चली
>
> किवाड़ भी तक तक ऊंघने लगा है
> दस्तक को भी ऊंचा सुनने लगा है
>
>चले आओ अब तो
>की मूँद पाऊँ मैं यह पलकें थकी थकी
इक टीस दिल में उठती रहे गी
>कमी तुम्हारी खलती रहे गी
>
>सर्द हवाएं तीखी दोपहरी
>तेरी याद यूंही बनी रहे गी
>
>सावन की बद्री हवाएं पतझर की
>साथ मेरे यूं ही चलती रहे गी
>
>वोह चाय की प्याली
>वोह सिगरेट बुझी
>तेरे जाने की खबर देती रहे गी
>
>सिरहाने खामोश
>वोह सिलव्तें चदर की
> कहानी रात खुद अपनी कहे गी
>
>वीरानी गलियां
> खामोश रातें
> चांदनी यूंही एकेली पड़ी रहे गी
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