रिशवतें  देतेंहें हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर  प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
 पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
 या की फिर हो गुरुवार
 दूंध्तें  हैं बहाने
तेरे व्रत  रख रख तुझे रिजाने को
धुप  बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें  तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी  हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हर्यालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
 भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने  भी तू है
 हर सु है       मान लें         ऐलान कर दें
पर गर      किनतू        लेकिन
घटाओं  के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
 फूलूँ के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
 प्यारे की जुदाई का सुनते  ही
 लक्ष्मी के रूठे ही
सोच लेते हैं
 मान लेते हैं
 झट पट इल्जाम्देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता
 रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम
 
  वोह नहीं है
 होता तो दिखाई देता
 ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................
 झूठ बोली में
 इंसान हूँ ना
है इंसान गलतियूं का पुतला
अपने लिएय तो बहाना है ना
लिखने में गलती  हुई
 भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
 वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
 आदमी
आ + डमी
दम आए तो आदमी
 दम है ब्रह्म से
 तुझ  से
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ श्रृष्टि तेरी
तू ही है कायनात साड़ी
 सोचूँ महसूस करून
हर कर्ण मेंतुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
 फिर भी हम भरमे हैं
 भ्रम में हेंहुम सभी
 सब झूठ है
बस एक  तू है सच
तू ब्रह्म
है
 भ्रम नहीं
 
 
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