शनिवार, 12 जून 2010

मिली नही

मिली नही नजर कि बस जुबान बन गई
आवाज़ का खयाल ही तो कान बन गई

ओंठ कपकपा उठे पर दिल न कह सका
ये कैसी शर्म है कि जो गुलाल बन गई

शरारतों में, छुअन का ख्याल बस गया
एहसास छुप सका न, बेनक़ाब बन गई

बेबाक चले आये हो इस कदर जो सपन में
आंखे मेरी, ज़माने का हर ज़वाब बन गई

जाओ चले जाओ चुपके से पलक से
सहर होने को है, और ये बेहिज़ाब हो गई

बस गए हो दिल में, तो ताज़िन्दगी रहो
ये घर है अब तुम्हारा, मैं बेमकान हो गई

4 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

शरारतों में, छुअन का ख्याल बस गया
एहसास छुप सका न, बेनक़ाब बन गई

बेबाक चले आये हो इस कदर जो सपन में
आंखे मेरी, ज़माने का हर ज़वाब बन गई जाओ चले जाओ चुपके से पलक से
सहर होने को है, और ये बेहिज़ाब हो गई

wah kya baat hai.....
ati sunder

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बस गए हो दिल में, तो ताज़िन्दगी रहो
ये घर है अब तुम्हारा... waah

harminder kaur bublie ने कहा…

shukriya

मो. कमरूद्दीन शेख ( QAMAR JAUNPURI ) ने कहा…

Dil men mitha mitha bhav jagati bahut hi sunder rachana. Badhai.