चाँद को देखो
कितना सुन्दर कितना प्यारा
पर हे उस के मनमें दुःख का दाग़
ले कर कासा भीख का हाथ ्मे
रोज़ करे मिन्नत
सूरज की
तरसे प्रीत की चांदनी को
मांगता फिरता
एक बूँद प्यार की
कभी जो रवि को तरस आजी
टपका दे बूँद इक प्यार के
ख़ुशी से फूला न समता हो रहता हेई चाँद पहेली का
फिट उसी ख़ुशी में देखो देखो
हो चला हे दूझ का वोह
फिर इतराता होता तीझ का
और चौथ का हो रहता
कभी जो प्रस्संं हो जाय रवि देवता प्रकाश का
तो हो रहता यह चाँद प्यारआ चौदवीं का
चाँद हमारा
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