शनिवार, 13 जून 2009

मुझे ने बाँध पाएं गे यह किनारे
मुझे न बांद्ध पाएं गी यह बहारें

नहीं रोके सकती यह दीवारें
मुझे न पकड़ पाएं गी यह हवाएं

रात ही स्याही से मैं डरती नहीं
क्या कह लेंगी मुझे यह सावन की घटाएं

यह चंदा यह तारे यह सूरज
कोई न मुझे संभाल पएय

यह बादल यह आकाश
नहीं न मुझ को यह छू पएय



पास किसी के में रहती नहीं
किसी की हो के रहूँ य्व्ह मुमकिन नहीं

यूं तो में सब की हूँ
जो बुलाले प्यार से
उसी ही की हो के रहती हूँ
नन्हे हाथ भी रोके लेते मुझे
प्यार की खातिर
मिट मिट जाती हूँ में
में हूँ प्रीत जो बसटी हूँ सब में
पर कोई मुझे न रोक पएय

मुझेई नहीं मालूम में काया कहना चाट इहूँ
में स्वाचंद विचार हूँ
प्यार हूँ
एक ख्याल हूँ
लारी हूँ प्रीत की

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