गुरुवार, 4 जून 2009

naari

फूलूँ फलूं से लड़ी बेल सी होती हे नारी
जनम से ही मांगे सहारा बचिआं सारी
कभी बाप कभी भाई की बाहूं पर भारी
ता उम्र अंगुली पकर के चलना रखे जारी
कितनी भी बरी हो चाहे पहने साडी
फिर भी एकेले रहना परे भरी
उअर भर रहती मर्द की आभारी
तन मन उम्र उस के आगे हारी
रहती हे बन के दासी उम्र साड़ी
कभी बने बहिन कभी मातारी
जीवन सारा लुटा देती जाए दूजून पे वारी वारी
नहीं तू अबला नहीं तू नहीं बेचारी
नारी तू शक्ति हे नहीं तू बेसहारी
तुझ को न समझ पाई यह दुनिया साड़ी
यूं तो पूजे तुझे अल्लाह की कायनात सारी
तेरे आगे दुनिया की सब सूझ हारी
तू सुन्दर हे हे तू कितनी प्यारी
नारी यह जग रहेगा सदा तेरा आभारी

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