गुरुवार, 4 जून 2009

sookhe patte

सूके पत्ते
कल तह थे जो बातें करते हवा के संग
हिते डुलते झूलते द्रख्तून पे चढ़
खूब इतराते किस्मत पर अपनी
पतझर आया उसी हवा के झोंके ने
फिर दुलाया
ला जमीन पर पटकाया
हुए धरा शाई
मुँह के बल परे रहे गे
ठोकर में जमाने की
खटकते आन्खून में सब की
मिल ख़ाक में ख़ाक हो रहे गे
सूखे पत्ते
कभी किस्मत ने पलती खाई
हवा आई ले गई उरदा
कहीं कभी कहीं कभी
उरते उरते जा बेठे किसी प्रेमी के करीब
रख ले जो किताबोमें
खोए मीठी यादूं में
जी जाए फिर
एक उम्र और
हो जाएँ अमर
सूखे पत्ते

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