चादर ओर्धे चाँदनी की
रात ..............
रात भर .......
मूंदे अखीयान करती इन्तजार
रात...........
रात भर
साजन का
 नींद का ख्वाबून का
तारों से करती बात
रात....
रात भर ...
बदलती रही करवाते रातभर
रात...
जरा सी सरसराहट पर
हर आहात पर चौंक चौंक  जाती
रात......
रात भर ....
न नींद आई न ख्वाब ऐ न तुम ही आए
रात भर
करवटें  बदलती रही रात ...
रात भर न सोई
ख्यालूँ में खोई
प्यार में बेबस बेकरार
अब   गई हार गई
रात......
चादर चांदनी की सरअकने लगी सर से
किरने सूरज क जो आ पडी  साथ
मलती आँखे लेती अंग्धाई आधी अधूरी
रात....
उठ चली
छोड़ सिलवाते नींद की गोदी से
रात....
निकल चली  वोह गई वोह गई
रात
उमीदे  जगाए दिन भगा आया
मिलन की आस लाया
औब ख्वाब देखती हे खुली आन खून से
रात..
दिन भर
रात....
 
 
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