धुल परई  जो सोच  पर
उसे झार लूं  जरा तो कुछ सोचूँ
नींद से बोझिल पलके  ज़रा  उठा लूं
तो कुछ देखूं
मन की थकान कोजरा आराम दे लूं
तो कुछ मानु
लगाम ख्यालूँ कीजरा खींच लूं
तो कुछ समझूं
ख्वाबो को जो सुला आऊँ
तो कुछ ध्यान दूं
जुब्बन थम  जाए जो पल भर को
तो कुछ कहूं
न सोच  साफ़ हुई
 न दिल ही मानता है
नाख्यालूँ को ही हे आराम
ख्वाबो को नींद नहीं आती
जुबान को कहाँ हे आराम
पलकें मूंदी ही  रहती हे सदा
तो
क्या  सोचूँ  क्या  मानू क्या  बोलूँ  कया समझूं काया कहूं
तुम्हारे सिवा ........
 
 
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