सोमवार, 1 जून 2009

tumhare siwa

धुल परई जो सोच पर
उसे झार लूं जरा तो कुछ सोचूँ
नींद से बोझिल पलके ज़रा उठा लूं
तो कुछ देखूं
मन की थकान कोजरा आराम दे लूं
तो कुछ मानु
लगाम ख्यालूँ कीजरा खींच लूं
तो कुछ समझूं
ख्वाबो को जो सुला आऊँ
तो कुछ ध्यान दूं
जुब्बन थम जाए जो पल भर को
तो कुछ कहूं
न सोच साफ़ हुई
न दिल ही मानता है
नाख्यालूँ को ही हे आराम
ख्वाबो को नींद नहीं आती
जुबान को कहाँ हे आराम
पलकें मूंदी ही रहती हे सदा
तो
क्या सोचूँ क्या मानू क्या बोलूँ कया समझूं काया कहूं
तुम्हारे सिवा ........

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