बुधवार, 12 अगस्त 2009

गली के कोने पर जहां छोर कर आई थी
आज भी वही देख पाती हूँ
आप की उदास आँखें रुकी हुई
आप मेरे मुड के देखने का इन्तजार करते रहे
पर नहीं जाना
की आज भी मेरे पीठ पर गहरे निशाँ हैं उन
गडी गडी नजरूं के
में मजबूर हूँ सामने देखने के लिएय
पर पीछे क्या है जानती हूँ खूब
उसी दुनिया किहूँ में आज भी
मुख सामने है पर दिल वही
सड़क के किनारे उसी मोड़ पर छोर आई थी
जाओ लाओ ना
दिल मेरा संभाल लो
मेरी खातिर

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