बुधवार, 12 अगस्त 2009

मेरे मालिक

कची नींद में करवट बदलते ही
एहसास जग जाएं तो मालूम होता है
मेरे मालिक का हाथ है सर पर मेरे

आँख खोल देख पाती हूँ
गर झरोखून से उस पार
जहां रहता है मेरा प्रीतम प्यारा

समझ जाती हूँ
नहीं मेरे भीतर ही है
यहीं है मेरे आस पास

दिन भर की हर मुस्कान
है उसी का आशीर्वाद

झाँक झाँक मेरी आन्खून से
देखे सब संसार
फिर कहे हौले से मेरे कानो में
कर प्यार प्यार कर

हर सु मैं ही हूँ बिखरा हुआ
कण कण हूँ मैं ही बसा हुआ
मेरा ही रूप है तू भी

कर ले खुद से भी प्यार
बस प्यार ही प्यार

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