मंगलवार, 8 सितंबर 2009

चांद सलोना प्रीतम जैसा

भूखे की रोटी सा चांद
प्रेमी की महबूबा जैसा
राही का हमराही बनकर
साथ निभाता राह बताता

चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता

सूरज के घर भिक्षु बनकर
सन्यासी सा वह ज्योत मांगता
बदली संग रास रचाता
नभ में मोहक चित्र बनाता ..

चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता

दादी नानी का प्यारा चन्दा
कथा कहानी में छा जाता
बचपन में मामा सा प्यारा
अब, प्रेमी सा रूप बनाता

चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता

प्रीतम प्यारे तुम भी आओ
चन्दा बन मन में बस जाओ
अठखेली कर न तरसाओ
बन के चान्दनी ही छा जाओ

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