शनिवार, 19 जून 2010

धरकन इक छोटी सी बिछड़ी दिल से कुछ ऐसे
उंगली जो थमी थी बरसो से छूट गई हो जैसे

नन्ही सी आन्सो की बूँद पलकों से टपकी कुछ ऐसे
दर्द का सह्लाब बह निकला हो जैसे

वक़्त के हाथों से लम्हा इक गिरा यूं
पछता रही हूँ आज भी इक यह हुआ कयूं
कतरा कतरा जिंदगी रोई कुछ ऐसे
तिल तिल कर जले दिए में लौ जैसे

सान्सून की लड़ी से सांस इक गिर गई कयूं
आखिर तुम मुझे छोड़ कर चल दिए कयूं

याद इक छुट गई पीछे कहीं सदियूं से परे
जब से रहने लगे हो तुम हम से कुछ परे परे

2 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi badhiyaa

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हरमिंदर जी ... अच्छी ग़ज़ल है लाजवाब .. पर कुछ शब्द ठीक नही लिखे हैं ... कृपया सुधार लें ... ग़ज़ल और भी अच्छी लगेगी ...