गुरुवार, 8 जुलाई 2010

न धडकन है टूटी,

न दिल ही है बिछुडा ।

ज़रा सी ये दूरी
थी थोडी ज़रूरी ।


वरना ये सासें भी

ज़ख्मी हो जातीं ।

तेज़ हो चली थी,

ठहर न रही थी ।



ये थोडा सा संयम

और थोडा सा विरहा ।

मुझे थाम लेगा
मुझे राह देगा ।


राहें थी प्यारी

मुझे यूं लुभाती

भटक मैं चला था
ठहर न रहा था ।


मेरी थी गलती

तो सज़ा मैं ही मांगूँ

कष्ट जो तुम्हे हो

तो क्षमा भी मैं मांगूँ



मुझे माफ करना

खता भूल जाना

जो राहें पुरानी

उसी राह जाना ।



पल जो गुज़ारे

संग संग तुम्हारे

है मेरी अमानत

उसे न भुलाना ।

4 टिप्‍पणियां:

आचार्य उदय ने कहा…

सुन्दर रचना।

Sunil Kumar ने कहा…

sundar atisundar badhai

रश्मि प्रभा... ने कहा…

achhi lagi

Shaivalika Joshi ने कहा…

Sach sath gujare pal hi sabse badi amanat hote hain......