शुक्रवार, 10 जून 2011

इक टीस दिल में उठती रहे गी
>कमी तुम्हारी खलती रहे गी
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>सर्द हवाएं तीखी दोपहरी
>तेरी याद यूंही बनी रहे गी
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>सावन की बद्री हवाएं पतझर की
>साथ मेरे यूं ही चलती रहे गी
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>वोह चाय की प्याली
>वोह सिगरेट बुझी
>तेरे जाने की खबर देती रहे गी
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>सिरहाने खामोश
>वोह सिलव्तें चदर की
> कहानी रात खुद अपनी कहे गी
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>वीरानी गलियां
> खामोश रातें
> चांदनी यूंही एकेली पड़ी रहे गी
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